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1 Jul 2017 · 1 min read

गजल

इस सरबती बदन को जरा दिखा दे
मेरे तन मन मे जरा आग लगा दे

मैं साथी उस मेहखाने में क्यो जाऊँ
तुम मुझे यही जरा आँखो से पिला दो

मन मेरा बोझिल सा हो रहा है साथी
तुम मेरे मन को जरा ढाढ़स बांध दो

हुबहू पागल सा हो रहा है मेरा दिल
इस दिल को जरा सा सबर दिला दो

चाहत नुमाइश सी बिल्कुल भी नही है
तुम जरा इसको मेरी इबादत बना दो

उस बिन कैसे हँसता रहूँ ए मेरे मोला
मेरे दिल मे जरा कोई मीरा जगा दो

मिलन की तिश्नगी बहुत ज्यादा है साथी
जरा मुझसे मिल कर इसे बुझा दो

गर कोई खता ‘ऋषभ’ ने की है ‘महक’
तो गुमसुम न रहो मुझे कोई भी सजा दो

1 Like · 300 Views
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