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29 Jun 2017 · 1 min read

गजल

वो मुझ पर सितम ढाती रही
रात भर मुझको जगाती रही

काश दूर होती ये मुफ़लिसी
वो रात भर याद आती रही

मुझे अपनी छत पर बैठे हुये
रात भर देखकर मुस्कुराती रही

मेरी परेशानियाँ और बढ़ती रही
मुझे मुड़ मुड़कर देखती रही

खुशियाँ नही है ज़िन्दगी में
वो मुझे हर रोज सताती रही

जो भी ऊँगली उठी चाहत पर
वो मुझे हर बात बताती रही

चोट देकर वो मुस्कुराने लगी
हर लम्हा मुझे याद आती रही

मुसलसल मुफ़लिसी थमी नही ऋषभ
फिर भी मुझे देखकर वो हँसती रही

रचनाकार ऋषभ तोमर

1 Like · 485 Views
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