–आज मिलके उनसे–
आज मिलके उनसे ख़ारो-ग़म निकल गये।
बदले-बदले उनके मिज़ाज़ हमें बदल गये।।
कुछ ऐसी हसरत भरी निग़ाह से देखा हमें।
बंद दिल के दरवाज़े उसी वक्त खुल गये।।
उठा ली क़सम राहे-वफ़ा में दग़ा न करेंगे।
इस नेक वादे पर मेरे जानेमन मचल गये।।
चाह थी बादलों से देखें ईद का चाँद हम।
देखा उनका चेहरा तो इरादे ही टल गये।।
इरादे अटल हों तो आसमां छू ले इंसान।
हौंसले वाले पर्वतों को चींटी-सा मसल गये।।
उनसे मिलकर सफ़र कुछ आसान हो गया।
सुख-दुख समझ सके वो हमदम मिल गये।।
फूल-ख़ुशबू-सा साथ निभाएंगे क़सम ली है।
इश्के-बहार को दिले-चमन के रास्ते मिल गये।।
दिले-मंदिर में आरज़ू के दीप ऐसे जलाएं हैं।
देखकर मंज़र हवाओं के भी दिल खिल गये।।
इश्क़ की आग बराबर ऐसी लगी दो दिलों में।
ज़माने के रस्मो-रिवाज़ भी हैं आज जल गये।।
“प्रीतम”आज तेरे चेहरे पर रौनक आ गयी है।
लगता है ज़िन्दगी से दिल के ग़म धुल गये।।
राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”
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