??◆तेरे नाम का गुल◆??
मेरी वफ़ा से बड़ी तेरी जफ़ा भी नहीं।
तेरी हर जिद्द मानी हुआ खफ़ा भी नहीं।।
तुझे छोड़कर जाने का मन नहीं था मेरा।
तेरे पास रहने की थी पर वज़ह भी नहीं।।
तुझे चाहते थे कभी खुद से भी ज़्यादा।
मिला तुमसे बड़ा कोई बेवफ़ा भी नहीं।।
अब मोहब्बते-रिश्ता इख़्तियार कैसे हो?
विश्वास लौटाने का फलसफ़ा भी नहीं।।
वह गुल खिले भी तो अब कैसे खिले।
बहारों को जिसका मिले पता भी नहीं।।
यह सच है कि मुझे तुमसे प्यार न रहा।
पर सच यह भी है कि गिला भी नहीं।।
वक्त बदले खुद को बदल ले जो दोस्त!
क़सम है रब की वो हमें जचा भी नहीं।।
काँटों का कर्म चुभना,फूलों का खिलना।
नाराज़गी का इसमें सिलसिला भी नहीं।।
जिसको जो भी अच्छा लगे दिलखोल करे।
फितरत् बदलने का हममें हौंंसला भी नहीं।।
गुलशन में गुलों की कमी तो नहीं”प्रीतम”!
पर तेरे नाम का गुल अभी खिला भी नहीं।।
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राधेयश्याम…बंगालिया…प्रीतम…कृत
सर्वाधिकार…सुरक्षित…गजल
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