??◆ राज दिलके◆??
वो मिले भी न मिले मिलके।
कह पाए न हम राज दिलके।।
वो गुल खिला भी क्या खिला।
दे पाया न ख़ूशबू जो खिलके।।
फ़ासले आख़िर फ़ासले ही रहे।
क़रीब गर न आया वो चलके।।
उसके आने से ब़ज्मे-रौनक़ हो।
चाँद निकला ज्यों शाम ढ़लके।।
क़ुर्बान हो गया वो परवाना था।
रात शम्मा पर यार वो जलके।।
मुहब्बत का यही सिला मिला है।
खुल गए हैं भेद दिलसे निकलके।।
अपने गै़र हुए गै़र शेर हुए देखो।
मारने पहुँचे हमें इंसानियत तलके।।
किसका भरोसा,किससे गिला करें।
सब छलते हैं रूप बदल बदलके।।
फूलों से दोस्ती,काँटों से नफ़रत।
यही फ़लसफ़े हँसते हैं संभलके।।
वो नहीं मिलते गर तुम ही मिलो।
चलो पूछें”प्रीतम”हाल पल-पलके।।
???..राधेयश्याम बंगालिया
“प्रीतम”