?? प्रेम की गंगा??
तेरा चेहरा है ये मानो प्रेम की गंगा।
तुमसे मिल मेरा दिल हो गया चंगा।।
तू मेरे हृदय की चाँदनी चन्द्रमुखी-सी।
पाकर जिसे पा गया में चाहत-उमंगा।।
तू धड़कन में धड़का करे सुबह-शाम।
हिलोरे ले काशी में बहकर ज्यों गंगा।।
विरहाग्नि सुबह मिलकर शांत हुई,प्रिया!
दिल ने रातभर किया,सुन!मुझसे दंगा।।
दिल रोया रातभर तेरी याद ले लेकर के।
स्वप्न में चली कहानी तेरी भरकर तरंगा।।
क़सम प्यार की मैं जीऊँगा तेरे ही लिए।
ज़माना कर दे चाहे मेरी जान का पंगा।।
मौत का फरमान लेकर आया जब कुटुंब।
मैंनें भी रख दिया दिल सामने कर नंगा।।
“प्रीतम”तेरी प्रीत क्यों मैं छौड़ दूँ डरकर।
फूल-दिल में रही ख़ुशबू बन सदा संगा।।
राधेश्याम बंगिरिया “प्रीतम” कृत
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