गजल/गीतिका
#काफ़िया_मिलाओ – 5*************************
मुहब्बत खुदा है वह जानता नहीं है।
मुहब्बत की ताकत पहचानता नहीं है।
मिटाने चला इस जहां से मुहब्बत
मुहब्बत खुदा है वह मानता नहीं है
आतंकी ठिकाने बना कर है बैठा
मुहब्बत के गीत गुनगुनाता नहीं है
लगता जमीर मर चूका है अब उसका
मुहब्बत का मतलब समझता नहीं है
कि कोई तो बताये उसे मजहब की बातें
जहाँ न मुहब्बत खुदा रहता नहीं है।
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✍ ✍ पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण
बिहार