??क्यों जोड़ा प्यार का बंधन??
सारा सावन बीत गया,बैठे हैं पलकें बिछाए।
विरह में सावन-से बरसे,नयन आँसू छलकाए।।
तुमसे अच्छी है याद तेरी,दिल में घर बनाए।
देकर मिलने की दिलाशा,जीवन-उम्मीद जगाए।।
आँखों में सजकर सपना,कहता रोना न कभी।
लाकर तस्वीर तेरी प्रिय,पल-पल मुझे दिखाए।।
लोरी सुनाकर रात कहती सो जाओ सहेलियो।
आँखों! मैं भी तन्हा हूँ,खामोशी गले लगाए।।
छिप गया चाँद बादल में,तड़फा दिल किसी का।
आशा न छोड़ी चकोर ने,बैठा नयन को उठाए।।
दिन के उजाले,रातों के प्याले,सुलगाते ज़िस्म।
कैसे विरह में तपते रहें,कोई उन्हें ये समझाए।।
दूर ही रहना था”प्रीतम”,फिर क्यों जोड़ा बंधन।
लुटा दिया तन-मन हमने,विश्वास का दीप जलाए।।