??◆एहतराम करता चलूँ◆??
जो मिले राह में,एहतराम करता चलूँ।
सुबह हो या शाम,यह काम करता चलूँ।।
गले मिलूँ कभी निग़ाह में बसा लूँ दोस्त!
जो बने उस तरह से,काम करता चलूँ।।
दिल साफ़ है मेरा,आरज़ू भी पाक है।
प्यार से सभी को,सलाम करता चलूँ।।
कोई बोले या न बोले मैं बोलूँ सदा ही।
घमंड को चारों कोना नाकाम करता चलूँ।।
फूल हँसता,चाँद मुस्क़राता,सूर्य रोशनी दे।
इनसे बढ़कर में जहाँ में नाम करता चलूँ।।
दंभ नहीं समभाव दिल में हिलोरे लिए है।
बेकार मैं क्यों ख़ुद को बदनाम करता चलूँ।।
इंसानियत रुह में अंगड़ाइयाँ लेती है अगर।
नफ़रत का मैं क्यों ज़ाम फिर पीता चलूँ।।
तसल्ली न सही ख़ुदा का विश्वास ही सही।
विश्वास में ख़ुद ही दुवा सलाम करता चलूँ।।
राह फूलों की हो या काँटों की मेरे हमदम।
ठहरूँ,चलूँ,दौडूँ,या मिट शाम करता चलूँ।।
कभी ख़ुशी,कभी ग़म,फलसफ़े हैं ज़िंदगी के।
मैं सफ़र में हर शै को सुकाम करता चलूँ।।
प्रीत मेरी प्रीतम से है,न ज़माने से सुनले।
दिले-रुतबा ये मैं दोस्त,आम करता चलूँ।।
…….राधेयश्यम बंगालिया प्रीतम