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19 Nov 2018 · 1 min read

गंगा (गीत)

बहती निर्मल कल-कल करती,पावन गंगा की धारा
तन मन के कष्टों को हरती, पावन गंगा की धारा।।

गंगोत्री गौमुख से आई ,भागीरथ के तपबल से।
सारे पुरखों को तार दिया,है अपने पावन जल से।
धवल धवल झरने सी झरती,पावन गंगा की धारा।
तन मन के कष्टों को हरती, पावन गंगा की धारा।।

लिया जटाओं में शंकर ने ,हर हर गंगे नाम दिया।
उसके ही सारे पाप हरे, जिसने इसमें स्नान किया।
सुख से सबकी झोली भरती,पावन गंगा की धारा।
तन मन के कष्टों को हरती, पावन गंगा की धारा।।

यूँ तो मात हमारी हम पर, अतिशय नेह लुटाती है।
देख हमारी मनमानी पर, क्रोधित भी हो जाती है।
रूप प्रलय जैसा तब धरती, पावन गंगा की धारा।
तन मन के कष्टों को हरती, पावन गंगा की धारा।।

माँ गंगा के पावन जल में, अमृत के भंडार भरे।
गंगा जल ही पीकर मानव,भवसागर को पार करे।
धन्य हुई पाकर माँ धरती, पावन गंगा की धारा।
तन मन के कष्टों को हरती, पावन गंगा की धारा।।

मानव ने निजहित के खातिर,नदी किनारे काट दिये
और नदी के निर्मल धारे,भी मैले से पाट दिये।
आज जहर पी तिल तिल मरती ,पावन गंगा की धारा।
तन मन के कष्टों को हरती, पावन गंगा की धारा।।

19-11-2018
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद

Language: Hindi
4 Likes · 4 Comments · 653 Views
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