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27 Aug 2017 · 1 min read

गंगा और भगीरथ

हे! पुत्र,हजारों साल पहले
तुमने मेरी तपस्या कर
जग एवं जनकल्याण हेतु
मुझे बुलाया धरती पर,
परंतु स्वार्थी ये मानवगण
शिखर पर जिनके अंधापन
मुझे विषैली कर, मेरे अस्तित्व को
नाश करने की शायद जिद ठान ली है ।
सुरक्षित थी मैं,महादेव की जटाओं में
शांत व निर्मल थी,
अपनी धुन में बहती थी,
पर धरती पर तुमने लाकर,
शापित कर दिया है,
अब मैं ‘गंगा’ नहीं
ना ही किसी की माँ ही,
अब मैं एक बूढ़ी,लाचार,
कमजोर,विवश हूँ,
जिसका कोई इलाज नहीं,
फरियाद जिसकी कोई सुनता नहीं ।
हाँ माते,मैं दोषी हूँ तुम्हारा
तुम्हे धरती पर बुलाकर
लोक-कल्याण की भूल हुई मुझसे
परंतु चिंता न करना माँ तुम
पृथ्वी,जब सूखकर दोबारा फटने लगेगी,
या फिर विषैला जल,मानव को,
चारो ओर से एकदम घेर लेगा,
जब स्वच्छ जल के लिए
लोगों में कोहराम मच जाएगा,
और फिर से जब कोई ‘भगीरथ’ बनकर
तुम्हारी तपस्या करने लगेगा,
तब तुम विरोध करना उसका
दोबारा पृथ्वी पर न आना तुम
छुप जाना फिर से भोलेनाथ की जटाओं में,
तब मैं भी साथ दूँगा तुम्हारा
प्रायश्चित कर लूँगा मैं,अपनी भूल का ।

Language: Hindi
1 Like · 402 Views
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