Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 Sep 2021 · 2 min read

” ख्याल अपना -अपना ,पसंद अपनी -अपनी “

डॉ लक्ष्मण झा “” परिमल “”
==========================
आज सब अपने ही धुनों पर थिरक रहे हैं !……. लगता ही नहीं है कि हम कभी ‘कोरस ‘ भी गाया करते थे ! सुरों का सामंजस ,ताल ,लय ,उतार चड़ाव के साथ रंगमंचों में चार चाँद लग जाते थे ! हम सब एक साथ चलते थे ! हमारे समूहों में किसी के लडखडाने का आभास हो तो उसे सारे लोग अपने कन्धों में उठाये बैतरनी पार कराते थे ! हमारे सहयोग ,विचारधारा ,आपसी ताल मेल के बीच द्वन्द का समावेश यदि होता भी था तो निराकरण विचार विमर्स के बाद हो ही जाता था ! समान विचार धारा वाले ही अधिकांशतः मित्र बनते थे ! हम भलीभांति उन्हें जानते थे वे हमें जानते थे ! हम उम्र होने के नाते हम अपने ह्रदय की बातों को बेहिचक एक दुसरे के सामने रखते थे ! अपने कामों के अलावे मित्रों के साथ समय बिताना किसे नहीं अच्छा लगता था ! अच्छी- अच्छी बातें करना ,हँसी मजाक ,भाषण देने का अभ्यास , संगीत, गायन ,खेल -कूद इत्यादि..इत्यादि हमलोंगो को भाते थे !….परन्तु ……आज के परिवेश में मित्रता की परिभाषा ही बदलने लगी !……हमने तो पुराने को सराहा ..नए युगों का भी स्वागत्सुमनों से स्वीकार किया ! …हम अभी भी आरती की थाल लिए प्रतीक्षा कर रहें हैं ..आँगन में रंगोलियाँ सजी है …कलश में धान की बालियाँ डाली गयीं हैं ….थाल में गुलाबी रंगों का लेप है …हम गृह लक्ष्मी का अभिनन्दन करेंगे ! हमें सबसे जुड़ना चाहते हैं ! ……और हम जुड़ने भी लग रहे हैं ! …पर एक बात तो माननी पड़ेगी ..हम एक दुसरे को समझ पाने में कहीं न कहीं पीछे पड़ गए ! ..कोई निरंतर लिखता है ..”हाई…कैसे हैं ?..आप अपना सेल्फि भेजें ….क्या बात है ..क्या आप नाराज हैं ? “……. यही बातें शायद सबको चूभ सकती है ! दरअसल मित्रता का दायरा विशाल हो गया पर हम एक दुसरे को जान ना सके … मित्रता का स्वरुप कुछ बदला बदला नजर आने लगा है ! बस हम यहीं पर लडखडा गए हैं ! …..कभी -कभी कोई मित्र युध्य शांति के बिगुल बाजने लगते हैं और कहते हैं ” मैने अपना टाइम लाइन को आउट ऑफ़ बाउंड बना रखा है इसे झाँकने का प्रयास ना करें “…….कहिये तो, मित्रता में यह प्रतिबन्ध कैसा ?… सब ठीक हो जायेंगे …..हम जान गए, नयी नवेली दुल्हन को समझने में समय तो लगेगा ! तब तक हम ” अपनी ढपली,अपना राग ” गाते , बजाते और सुनते रहें …….!
===========================
डॉ लक्ष्मण झा “” परिमल “”
एस ० पी ० कॉलेज रोड
नाग पथ
शिव पहाड़
दुमका

Language: Hindi
Tag: लेख
359 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
“पसरल अछि अकर्मण्यता”
“पसरल अछि अकर्मण्यता”
DrLakshman Jha Parimal
"मेरे पास भी रखी है स्याही की शीशी। किस पर फेंकूं कि सुर्ख़िय
*Author प्रणय प्रभात*
"दण्डकारण्य"
Dr. Kishan tandon kranti
जीवन जितना
जीवन जितना
Dr fauzia Naseem shad
विरह वेदना फूल तितली
विरह वेदना फूल तितली
SATPAL CHAUHAN
💐प्रेम कौतुक-484💐
💐प्रेम कौतुक-484💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
पहला खत
पहला खत
Mamta Rani
दरवाज़ों पे खाली तख्तियां अच्छी नहीं लगती,
दरवाज़ों पे खाली तख्तियां अच्छी नहीं लगती,
पूर्वार्थ
★भारतीय किसान★
★भारतीय किसान★
★ IPS KAMAL THAKUR ★
शिल्पकार
शिल्पकार
Surinder blackpen
विनाश की जड़ 'क्रोध' ।
विनाश की जड़ 'क्रोध' ।
Buddha Prakash
शहर में बिखरी है सनसनी सी ,
शहर में बिखरी है सनसनी सी ,
Manju sagar
"पकौड़ियों की फ़रमाइश" ---(हास्य रचना)
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
*
*"हरियाली तीज"*
Shashi kala vyas
" आज भी है "
Aarti sirsat
मुझसे गुस्सा होकर
मुझसे गुस्सा होकर
Mr.Aksharjeet
आज और कल
आज और कल
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
इंसान कहीं का भी नहीं रहता, गर दिल बंजर हो जाए।
इंसान कहीं का भी नहीं रहता, गर दिल बंजर हो जाए।
Monika Verma
खुद ही परेशान हूँ मैं, अपने हाल-ऐ-मज़बूरी से
खुद ही परेशान हूँ मैं, अपने हाल-ऐ-मज़बूरी से
डी. के. निवातिया
आदमी की गाथा
आदमी की गाथा
कृष्ण मलिक अम्बाला
रंगीला बचपन
रंगीला बचपन
Dr. Pradeep Kumar Sharma
खोया हुआ वक़्त
खोया हुआ वक़्त
Sidhartha Mishra
*घर की चौखट को लॉंघेगी, नारी दफ्तर जाएगी (हिंदी गजल)*
*घर की चौखट को लॉंघेगी, नारी दफ्तर जाएगी (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
2606.पूर्णिका
2606.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
अंधा बांटे रेबड़ी, फिर फिर अपनों के देवे – कहावत/ DR. MUSAFIR BAITHA
अंधा बांटे रेबड़ी, फिर फिर अपनों के देवे – कहावत/ DR. MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
दुनिया में लोग अब कुछ अच्छा नहीं करते
दुनिया में लोग अब कुछ अच्छा नहीं करते
shabina. Naaz
बस एक गलती
बस एक गलती
Vishal babu (vishu)
एक पिता की पीर को, दे दो कुछ भी नाम।
एक पिता की पीर को, दे दो कुछ भी नाम।
Suryakant Dwivedi
संस्कार मनुष्य का प्रथम और अपरिहार्य सृजन है। यदि आप इसका सृ
संस्कार मनुष्य का प्रथम और अपरिहार्य सृजन है। यदि आप इसका सृ
Sanjay ' शून्य'
आपकी यादें
आपकी यादें
लोकेश शर्मा 'अवस्थी'
Loading...