एक चेहरे के कई रंग
हे ईस्वर में परेशान हूँ, रंगे पुते बुतों को देखकर
आत्मा भी हैरान है, एक चेहरे के कई रंग देखकर ।।
हर घर का अहाता देश है ,और देशभक्ति द्वार तक
इंसानियत बची हुई है , खिड़कियों के इस पार तक ।।
हाथ सब सने हुए है ,जाने अनजाने में किसी को मारकर
आँखों का पानी सूख चुका है, खून से सने हाथ साफकर।।
जमघटें लगे हुए है, इबादतगाहों के द्वार तक
खंजर भी छुपे हुए हैं, ऊपर वाले तेरे नाम पर ।।
सियासतें ही सियासतें हैं ,धर्म जाति के नाम पर
गाँवों की तरक्की हो चुकी है,फाइलों के काम पर ।।
घुट रहा है दम यहाँ, घिरती काली घटाओं को देखकर
सरफ़रोशी भी बिक रही है, कुर्सी की चाह सोचकर ।।
इंसान खुद को घिस रहा है,एक वक्त की भूख मारकर
फिर भी चेहरा हँस रहा है,थाली में सूखी चपाती देखकर ।।
फाइलों का ये अजब दस्तूर है, ये गजब संयोग है
देश तरक्की कर रहा है,आदमी को भट्टी में झोंककर ।।
सब डिजिटल बन गया है, इंसान ही बाकी बचा है
मशीन तो पहले ही था, चिप लगाना बाकी रहा है ।।