खुद से खुद को समझाने दो
थोड़ा खुद से खुद को समझाने दो,
भागती दौड़ती इस जिंदगी में
दो पल को ठहर जाने दो,
क्यूँ किये बैठे हैं मिज़ाज़ तल्ख अपना
थोड़ा अब खुद को मुस्कुराने दो,
क्या हुवा जो पा न सके दुनिया जहाँ की दौलत
कुछ सिक्के ही हमें खनखनाने दो,
क्यूँ पाले बैठें हैं रिश्तों में मगरुरियत
कहीं खुद को भी झुक जाने दो,
बहुत काट चुके बेचैनी भरी रातें
कुछ देर खुद को सो जाने दो,
वो जो लगे हैं अपनों से आगे निकलने में सभी
खुद को पीछे ही रह जाने दो,
क्यूँ याद रखें गमों की बीती बातें
थोड़ा उनको भूल जाने दो,
ये जो ओढ़ रखे हैं चेहरे पर उदासियों के नक़ाब
थोड़ा अब उसे खिलखिलाने दो,
माना कि आसान नही है मंजिल का सफर
थोड़ा राहों का भी लुफ्त उठाने दो,
थोड़ा खुद से खुद को समझाने दो…