खुद मै ही
मेरा दर्द
थी हवाएं सर्द
कंपकपाता
शहर से
गुजर रहा था
रगड़ हथेलियों को अपनी
गर्मी को
आगोश में ला रहा था
निकला ना कोई
घरों से अपने
खुद मै ही
अपनी परेशानियां
उठा रहा था ।
राजेश व्यास “अनुनय”
मेरा दर्द
थी हवाएं सर्द
कंपकपाता
शहर से
गुजर रहा था
रगड़ हथेलियों को अपनी
गर्मी को
आगोश में ला रहा था
निकला ना कोई
घरों से अपने
खुद मै ही
अपनी परेशानियां
उठा रहा था ।
राजेश व्यास “अनुनय”