” —————————खुद को आज छलेगा ” !!
आज की रचना का मूल आधार बना है –
” Azam Khan’s controversial statement against the Indian Army ‘
राजनीति की चौसर पर यह , कब तक खेल चलेगा !
मनमाने देगा बयान , और नेता हमें तलेगा !!
सीमा पर जो तन मन वारें , उनका मोल न जानें !
देशद्रोह इस देश में आखिर , कब तक यहां पलेगा !!
सोची समझी साजिश रचते , बनते बड़े मसीहा !
देश- दिलों को बांट रहे हैं , सबको यही खलेगा !!
प्रजातंत्र की आड़ में देखो , विषधर खूब पले हैं !
राजनीति के गलियारे में , उनको कौन दलेगा !
सबसे पहले देश हमारा , और उसके रखवारे !
उन पर आंच अगर आयी तो , कुछ भी नहीं टलेगा !!
निंदा के प्रस्तावों से बस , आगे की कुछ सोंचें !
कानूनों की सख्ती से ही , देश का रंग बदलेगा !!
मृत्युदण्ड हो देशद्रोह पर , या फांसी का फंदा !
न्याय तुला पर इससे नीचे , काम नहीं चलेगा !!
देशहितों पर आंच आ रही , खून अगर ना खौले !
हिंदुस्तानी होने का भ्रम , खुद को आज छलेगा !!
बृज व्यास