खिलौने
कितने ही रुपों में होते हैं खिलौने,
किन्तु उनका एक मात्र प्रयोजन होता है किसी के हाथों खेला जाना।
खिलौने जो सिर्फ बच्चों के लिए होते हैं,
बच्चे जिन्हे अपनी जान से ज्यादा चाहते हैं,
वह इन्हे खोना नहीं चाहते,
यह बात और है कि वह खेलते हुए टूट जाऐं,
पर वह फिर भी उन्हें संजोए रखते हैं,
और करते हैं प्रयास उन्हे बनाने का।
कुछ खिलौने ऐसे भी होते हैं,
जो अमीरों के घर की साज सज्जा का अंग होते हैं,
उन पर धूल भी नहीं जम पाती,
एक दम साफ सुथरे ,तरो ताजा,
आकर्षक मुश्कान बिखरते हुए।
कुछ ऐसे खिलौने भी होते हैं,
जो सिर्फ ,कुछ लोगों के हाथ खेले जाते हैं,
खिलाने वाला वह शख्स कोई भी हो सकता है,
और वह उसे कब , कैसे ,एवं किसके विरुद्ध खिलाता है,
इसठा चयन वह अपने अनुसार तय करता है,
जैसे किसी प्रतिस्प्रधी के विरुध या कि किसी जाति, समुदाय,ब्यवसायी,रचनाधर्मी,या किसी,राजनितिज्ञ के विरुध ,
ये खिलौने ऐसे ही होते हैं,
यह ऐसे ही लोगों के हाथ खेला जाना पसन्द करते हैं,औ कभी कभी तो इनकी महत्वाकांक्षा
इन्हे अपनो के विरुद्ध भी खेलने को भी होती है,
वह अपने मित्र हों,परिजन हों,आका हों,
के विरुद्ध भी खेलने को प्रस्तुत होते हैं,
क्योंकि इनकी चाहत इन्हे बडे बडों के तक
पहुंचने को प्रेरित करती है,
और इसी लिए यह बडे बडों तक पहुंचना,और उनके हाथों खेला जाना पसन्द करते हैं,
ऐसे खिलौने निर्जीव नहीं सजीव होते हैं।