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23 Jul 2020 · 1 min read

खाली बादलो से क्यों घुमड़ रहे हो

खाली बादलो से क्यों उमड़ रहे हो
****************************

मौसम की तरह तुम यूँ बिगड़ रहे हो
बिन बात के गलत राह पकड़ रहे हो

हाल ए दिल मजाज है रुसवां रुसवां
मुझे क्यो बाँहों में कस जकड़ रहे हो

कुछ कहने करने से पहले सोचा करो
खामख्वाह पापड़ से अकड़ रहे हो

मन में कुछ है तो खुल के बयान करो
छोटे छोटे वाद पर झगड़ रहे हो

नभ तो नीला है कोई कालिख नहीं
खाली बादलों से क्यों घुमड़ रहे हो

पोखर के पानी से तुम ठहरे रहो
बरसाती नीर से तुम उमड़ रहे हो

बिता वक्त हाथ किसी के आया नहीं
बिना मिर्ची मसाला तुम रगड़ रहे हो

हमसे कुछ खता हुई जरा माफ करें
रणभेरी ढोल से क्यों दगड़ रहे हो

सुखविंद्र आमोद से अलविदा कहे
तरी आँखों से मुझसे बिछड़ रहे हो
***************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

2 Likes · 1 Comment · 395 Views
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