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6 Mar 2017 · 1 min read

खामोशी

चारो तरफ खामोशी ही खामोशी
बाहर खामोशी, भितर खामोशी

बिस्तर भी खामोशी से सो रहा है.
जैसे बरसो की चाहत बोल रहा है.

खिड़कियॉ दरवाजे गुमसुम पड़े है
जैसे अभी उठकर नींद मे ऊघ रहें हैं..

आइना भी मेरी उजड़ी प्रतिबिम्ब बना रहा है..
जैसे जले हुए जख्म पर मरहम लगा रहा है..

घड़ियो की टिनटिनाहट भी खो सी गयी है.
समय और मिनटो को लेकर सो सी गयी है.
मेंज पर रखी किताबे भी थक सी गयी है..
एक ही पन्नो को उलटते हुए पक सी गयी है

ना मुझमे है खुशी. न रोशनी में मदहोशी.
बस चारो तरफ है खामोशी ही खामोशी…

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 270 Views
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