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14 Jan 2017 · 1 min read

||खादी ,खाकी और मीडिया ||

“हुयी मुलाकात खाकी और खादी की
नीलामी के बाजार में
हाल पूछ एक दूजे का
हुए मशगूल शब्दों के व्यापार में,
सबसे श्रेष्ठ हु मै अब भी
किया है गुलाम फिर से देश को
ऐसा कुछ खादी बतलाया
फिर आगे खुद का स्वांग सुनाया ,
फैली अराजकता जो दिखती है
हुआ है जो ये कत्लेआम
बुने है जाल हमने ही इसके
किया है राजनीती को बदनाम ,
खाकी नाम है मेरा फिर भी
खाक में मै मिल जाता हु
बिक के चन्द पैसो पर मै
खादी का साथ निभाता हु ,
भ्रष्टाचार का ये खेल नया
हमने ही तो खेला है
भरना जेब को रिश्वत से
इसका ही अब मेला है ,
चोरी,नाइंसाफी और रिश्वतखोरी
सबमे साथ निभाए है
रखके कंधे पे बन्दुक हमारे
हर दांव तुमने चलाये है ,
सुन इतनी सी बातें तब तक
गरजता हुआ मीडिया बोला
खुद को श्रेष्ठ बताके उसने
राज फिर अपना खोला ,
क्यूँ भुला है तुमने हमको
हर राज तुम्हारे छिपाए है
दिखाके झूठे समाचारों को
हर पल संशय फैलाये है ,
बाँट हिन्दू और मुस्लिम को
दंगो का स्वांग रचाया है
कराके रक्तपात दोनों में
खुद का धर्म निभाया है ,
मिटटी की जो कसमे खाते है
हम उनको मिटटी कर जाते है
मिलते है जब हम तीनो तो
गणतंत्र नया बनाते है ||”

Language: Hindi
473 Views
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