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11 Dec 2016 · 1 min read

ख़ौफ़ के मंज़र यादों से मिटाओ फिर से

ख़ौफ़ के मंज़र यादों से मिटाओ फिर से
सब मिलजुल कर मीठे नगमें गाओ फिर से

बेरंग से मौसम हरसू हैं फ़िज़ाओं में
चलो त्योहार होली के मनाओ फिर से

रोना मुस्कुराना गिरना -औ- संभलना
तुम भी बच्चे क्यूँ ना बन जाओ फिर से

हाय आते-आते लब तक कहाँ खो गई
चलो हँसी को रास्ता बताओ फिर से

सुलह्नामे के आते हैं आसार नज़र
आओ उठी दीवार को गिराओ फिर से

क्यूँ ना इक शायर की नज़र से देखकर
उदास चेहरा फूल- सा खिलाओ फिर से

दिल लेता है झूम कर अंगड़ाई अब तो
‘सरु’ आँगन में शहनाई बजाओ फिर से

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