खनकती चूड़ियों से हमने तो सरगम चुराए हैं
बह्र-हज़ज मुसम्मन सालिम
वज़्न – 1222 1222 1222 1222
ग़ज़ल
खनकती चूड़ियों से हमने तो सरगम चुराए हैं।
मुहब्बत के शजर सहरा में भी हमने उगाए हैं।।
वो होगें और कोई जो महकते हैं चमन में जा।
बियाबां में कई हमने नगर जाकर बसाए हैं।।
दिखाई दे रहे कलशे शिखर पर जो भी महलों के।
उन्ही महलों की हमने नींव में सपने समाए हैं।।
बने बैठे है जो आवाम के सरताज दुनिया में ।
सियासत के लहू से तख़्त उनके तो नहाए हैं।।
बग़ाबत कर रहे हमसे जिन्हें तालीम दी हमने।
हैं वो नादान क्या समझे कहां ज़ोर आज़माऐ है।।
जो महफ़िल में सुनाते हैं चुराकर और के नग़मे।
तभी तो ‘कल्प’ ग़ज़लों से तखल्लुस भी हटाए हैं।।