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10 Jun 2017 · 1 min read

खत

ख़त, चिट्ठी/डाकिया,हरकारा

विरहिन का दर्द क्या जाने डाकिया वो तो बस हरकारा है।
इंतज़ार की घड़ियाँ बहुत कठिन हैं बस ख़त ही सहारा है।

व्हाट्स ऐप, ईमेल, फेसबुक और वीडियो काल ने देखो
मचाया कैसा बबाल।
डाकिया हरकारा क्या होता है,नयी पीढ़ी करती सवाल।

आधुनिक तकनीक से वैसे तो हैं आई जीवन में क्रांति।
पर जो खत पढ़कर मिलती थी, अब नहीं वह मन की शांति।

कभी किसी ज़माने में सबको, चिट्ठी का इंतजार रहता था
कोई अत्र कुशलम तथास्तु। कोई दिल की बात कहता था

रिश्तों संबंधों की दुनिया न जाने खो कहां गयी।
लगता है सब दोस्ती यारी मोबाइल की सिम में सिमट गई।

इंतजार रहता था मां को सैनिक बेटे की चिट्ठी का।
सरहद पर तैनात फौजी को, स्वदेश की मिट्टी का।

दूर प्रदेश में ब्याही बेटी की खैर खबर, चिट्ठी का।
मायके की खैर खबर बतलाती, बाबुल की प्यारी चिट्ठी का।

यादें नीलम फिर आ गूंजी, ख़त थे कभी अमूल्य पूंजी।
किसी विरहन का मरहम,कभी प्यार इकरार की कुंजी।

नीलम शर्मा

Language: Hindi
283 Views
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