Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
12 Mar 2017 · 2 min read

कफ़न ओढ़ने को मजबूर है प्रतिभा

भारतीय जन नाट्य संघ की पत्रिका में प्रकाशित
प्रधान सम्पादक की कलम से………..
.
कफ़न ओढ़ने को मजबूर है प्रतिभा

जँहा एक ओर भारतीय जन नाट्य संघ इप्टा की बाल एवं युवा रंगकर्मी नाट्य कार्यशाला 2014 में निखारे गए साहित्य के नक्षत्रों से सुशोभित पत्रिका “शुरुआत” आपको सौपते हुये अत्याधिक प्रसन्नता हो रही है वहीँ दूसरी ओर संसाधनों की कमी एवं समाज द्वारा नौकरी दौड़ को विशेष प्राथिमकता देना बार बार जहन में एक अहम सवाल को जन्म देता नजर आ रहा है कि 21 वीं सदी में क्या सफल जीवन जीने के लिये सिर्फ किताबी ज्ञान की आवश्यकता है, सामाजिक ज्ञान का नहीँ? यदि मै इस सवाल का हल खोजने की कोशिश करता हूँ तो अपने आप को सिर्फ इसी निष्कर्ष पर खड़ा पाता हूँ कि किताबी ज्ञान के साथ- साथ सामाजिक ज्ञान भी अति आवश्यक है। सम्भवतः मेरे इस निष्कर्ष को हाल ही में हुये शिक्षक विधायक के चुनाव में मतगणना के बाद सामने आई असलियत भी समर्थन करती हुई दिखाई दे रही है। आपके संज्ञान में होगा कि शिक्षक विधायक निर्वाचित करने के लिये स्नातक पास मतदाता ही मतदान करता है। इस चुनाव में सिर्फ पढे लिखे लोगों द्वारा ही मतदान करने के बाबजूद हजारो की संख्या में अमान्य मत निकलना शायद हमारे समाज के लिये शर्म की बात है। वस्तुतः जिन शिक्षित लोगों के मत अमान्य निकले उन्हें शिक्षित गधा ही कहा जा सकता है।
आधुनिक अभिभावकों की भेड़ चाल मानसिकता के कारण नई पीढ़ी किताबी कीड़ा जैसा कफ़न ओढ़ने को मजबूर है। दस अभिभावकों में से निश्चित ही ऐसे होंगे जो अपनी सन्तानों को डॉक्टर,इंजीनियर,शिक्षक आदि बनाने का ख़्वाब देख रहे होंगे। आज बुजुर्गो की इस बात पर विश्वास नही होता कि एक जमाना ऐसा भी था जब सरकारी नौकरी लोगों के पीछे भागा करती थी आज लोग नौकरी के पीछे सिर्फ भागने ही नहीँ लगे है बल्कि उनकी आखिरी मंजिल सरकारी नौकरी ही बनती नजर आ रही है।
आधुनिक समय में हमारा समाज देश को एक मालिक देने के बजाय एक नौकर देने में ज्यादा ख़ुशी महसूस करता है। बिडम्बना यह भी है कि प्रतिभावान युवा यदि किसी कलात्मक क्षेत्र में अपना कैरियर बनाना चाहता है तो उसे समाज व परिवार से मिली तरह तरह की आधारहीन प्रतिक्रियाओं के दबाब में आकर परिवार व समाज के खिलाफ कार्य करने को मजबूर होना पड़ता है। अब तक के प्राप्त अनुभवों के आधार पर मुझे लगता है कि नई पीढ़ी को अपनी प्रतिभा को निखारने के लिये सर्वप्रथम संघर्ष अपने परिवार से ही करना पड़ता है। इसी संघर्ष के साथ इप्टा रंगकर्मियों की रचनाओं से सुशोभित पत्रिका “शुरुआत” निश्चित ही जनचेतना के सशक्त माध्यम के रूप में उभर कर आएगी इसी विश्वास के साथ उड़ चला
………..पारस “पंख”
(पारसमणि अग्रवाल)

Language: Hindi
264 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
परिदृश्य
परिदृश्य
Shyam Sundar Subramanian
साहित्यकार ओमप्रकाश वाल्मीकि का रचना संसार।
साहित्यकार ओमप्रकाश वाल्मीकि का रचना संसार।
Dr. Narendra Valmiki
रूपेश को मिला
रूपेश को मिला "बेस्ट राईटर ऑफ द वीक सम्मान- 2023"
रुपेश कुमार
"तेरी खामोशियाँ"
Dr. Kishan tandon kranti
रोगी जिसका तन हुआ, समझो तन बेकार (कुंडलिया)
रोगी जिसका तन हुआ, समझो तन बेकार (कुंडलिया)
Ravi Prakash
दिल से निकले हाय
दिल से निकले हाय
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
एक शेर
एक शेर
डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
नज़र
नज़र
Dr. Akhilesh Baghel "Akhil"
बीज अंकुरित अवश्य होगा (सत्य की खोज)
बीज अंकुरित अवश्य होगा (सत्य की खोज)
VINOD CHAUHAN
■ मंगलमय हो प्राकट्य दिवस
■ मंगलमय हो प्राकट्य दिवस
*Author प्रणय प्रभात*
"डोली बेटी की"
Ekta chitrangini
पढ़ने की रंगीन कला / MUSAFIR BAITHA
पढ़ने की रंगीन कला / MUSAFIR BAITHA
Dr MusafiR BaithA
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धितायं।
विघ्नेश्वराय वरदाय सुरप्रियाय लम्बोदराय सकलाय जगद्धितायं।
Shashi Dhar Kumar
******* प्रेम और दोस्ती *******
******* प्रेम और दोस्ती *******
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
अंधकार जितना अधिक होगा प्रकाश का प्रभाव भी उसमें उतना गहरा औ
अंधकार जितना अधिक होगा प्रकाश का प्रभाव भी उसमें उतना गहरा औ
Rj Anand Prajapati
हरे! उन्मादिनी कोई हृदय में तान भर देना।
हरे! उन्मादिनी कोई हृदय में तान भर देना।
सत्यम प्रकाश 'ऋतुपर्ण'
গাছের নীরবতা
গাছের নীরবতা
Otteri Selvakumar
#सुप्रभात
#सुप्रभात
आर.एस. 'प्रीतम'
*माँ सरस्वती (चौपाई)*
*माँ सरस्वती (चौपाई)*
Rituraj shivem verma
*होय जो सबका मंगल*
*होय जो सबका मंगल*
Poonam Matia
गीत मौसम का
गीत मौसम का
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
बुद्ध की राह में चलने लगे ।
बुद्ध की राह में चलने लगे ।
Buddha Prakash
तृष्णा उस मृग की भी अब मिटेगी, तुम आवाज तो दो।
तृष्णा उस मृग की भी अब मिटेगी, तुम आवाज तो दो।
Manisha Manjari
जलपरी
जलपरी
लक्ष्मी सिंह
हमें ना शिकायत है आप सभी से,
हमें ना शिकायत है आप सभी से,
Dr. Man Mohan Krishna
,,,,,
,,,,,
शेखर सिंह
Stop chasing people who are fine with losing you.
Stop chasing people who are fine with losing you.
पूर्वार्थ
गौण हुईं अनुभूतियाँ,
गौण हुईं अनुभूतियाँ,
sushil sarna
*
*"अवध में राम आये हैं"*
Shashi kala vyas
" नयी दुनियाँ "
DrLakshman Jha Parimal
Loading...