*क्वाँरा दिल*
1.
थे अरमान दिल के जमीं पर उतरकर,
कारवाँ मोहब्बत संग-दिल बनाएँगे।
महबूब की तंग-गलियों से गुजरकर,
जमीं-आसमां दो दिलों से मिलाएँगे।
देगा ना ग़र ये ज़माना इज़ाज़त,
कसम-ए-मुहब्बत तोड़ सब सलाखें,
राह-ए-मुहब्बत का कारवाँ बनाएँगे।
2.
सज़र छाँव में आँख देख ख़्वाब सोई,
जमीं पर मिला ना हमसफ़र आज कोई।
उम्र-ए-जरा दिल गुल खिल जाये कोई,
हमसफ़र आज ग़र हमें मिल जाये कोई।
दिल-ये-तलक आज क्वाँरा है ‘मयंक’,
सज़रयुक्त बीहड़ जमीं कर जाये कोई।
3
मेरे दूर जाने पर कभी अश्क न बहाना,
बिन सोचे-समझे कहीं इश्क न लड़ाना।
समन्दर से भी गहरी है मयंक मोहब्बत,
थाह की चाहत में व्यर्थ वक्त न गँवाना।