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4 Dec 2016 · 1 min read

क्रांतिकारी मुक्तक

बहर- १२२२ १२२२ १२२२ १२२२

कभी अंग्रेज़ का हमला, कभी अपने पड़े भारी।
कभी तोड़ा वतन को भी, कभी गद्दार से यारी।
कलम का क्रांतिकारी हूँ, यही सब आग लिखता हूँ,
नमन शोला उगलता है, कलम संगीन-सी प्यारी।

नमन जैन नमन

Language: Hindi
988 Views
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