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27 Oct 2016 · 1 min read

क्यों इश्क करना महँगा पड़ा

क्यों इश्क करना उसे महंगा पड़ा
फिर निगाहों का कड़ा पहरा पड़ा

यार मेरा हो गया जो बाबला
जब शरारत की तभी डण्डा पड़ा

वो समझता क्यों नहीं समझाने से
इसलिए किस्मत पे अब ताला पड़ा

प्यार मेरा जो हमेशा से रहा
भूल अपना आज जो डूबा पड़ा

मैं बना सजना लगा लूँगी गले
क्योंकि पीछे आज ज्यादा पड़ा

लो चढ़ा उसको इश्क का जो ज्वर
इसलिए फिर आज वो औंधा पड़ा

साथ उसके ही रहूँगी आज मैं
क्योंकि मेरे साथ ही पाला पड़ा

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