क्या मुहब्बत देख ली
है न चाहत देख ली
क्या मुहब्बत देख ली
फ़िर हक़ीक़त देख ली
क्या सदाक़त देख ली
जो न देखी थी कभी
अब अदावत देख ली
क्या रिवाजों-रस्म भी
सब रवायत देख ली
वो पुजारी है बड़ा
कब इबादत देख ली
आपके दिल पर लिखी
हर इबारत देख ली
और होता है यकीं
जब नदामत देख ली
वो अदब करता नहीं
ये ज़हानत देख ली
जो कमाया साथ है
हमने बरक़त देख ली
है ये हावी ज़ह्’न पर
दिल की ताक़त देख ली
वो ख़फ़ा ‘आनन्द’ से
सबने उल्फ़त देख ली
– डॉ आनन्द किशोर