Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
6 Jun 2017 · 2 min read

क्या महसूस कर पाते हो तुम?

क्या महसूस कर पाते हो तुम?
मेरे सीने मे छिपे हर दर्द को?
क्या तुम देख पाते हो
मेरे दिल के हर दरार को?
छू पाते हो क्या तुम
हर रिसते हुये ज़ख़्म को?
क्या बता पाओगे कि मेरी रूह कहाँ बसी है
और कहाँ कहाँ उसे चीरा गया है?
पैनी कटारों से उसे कहाँ गोदा गया है?
नोची गई हूँ,
उजड़ी हुई हूँ,
नुकीली, धारदार चीज़ों से बनी हूँ,
जोड़-जोड़ कर ,उस ऊपरवाले की मेहरबानी के गोंद से चिपकाई गई हूँ,
क्या उस धार को महसूस कर पाते हो तुम?
एक बेरहम सी पहेली हूँ मै,
निर्जीव, संगदिल सच्चाई का खंड हूँ मै,
शायद महसूस नही कर पाते,
पर अनुभवहीन तो हो नही!
जानते हो ना सच्चे दुश्मन दोस्त ही बनते हैं
और अच्छे दोस्त दुश्मन,
अब जो मै तुमसे बेइंतहा नफ़रत करती हूँ,
क्या महसूस कर पाते हो तुम?

झूठ धातु की गोलियों की तरह भेद गये हैं दिल को मेरे,
छलनी सा कर गये मेरे सीने को,
एक अनंत खालीपन का अहसास विह्वल कर जाता है,
कचोटता है, मुझे कुचल जाता है,
एक निर्भिक सा विस्तार है,
निडर सा अंतराल,
कोशिश में हूँ उस अजब सी उलझन को कसकर पकड़े रहने की
जो मकड़ी के जाले सी ऐसी उलझी है कि ख़ुद ही सुलझ नही थाती,
खो रही हूँ खुद को दर्द के इस मकड़जाल में,
दिन ब दिन, वक्त दर वक्त,
टूटी हुई, क्षतिग्रस्त
इस कदर कि संभाल नही पायेगा कोई,
ना कोई संग्रहित कर पायेगा मुझे!
मानो टूटे शीशे से गढ़ी गई हूँ मै,
टूटी हुई, बिखरी सी, चकनाचूर,
क्या महसूस कर पाते हो तुम?

कोई खाली सी खोल हूँ मै,
एक मौन सा आवरण,
जिसमें कभी कोई तत्व था,
रक्त सा पदार्थ,
जिसका कोई महत्व था,
कोई अहमियत थी,
जिसमें एक जान बसती थी,
एक जिस्म था
जिसमें एक दिल धड़कता था,
एक रूह थी,
उड़ती फिरती,
अरमानों और ख़्वाहिशों से भरी पूरी,
अब टूटे टुकड़े गिर रहे हैं इधर उधर,
मुहब्बत चोट खाई हुई है,
ज़ख़्म बेशुमार है,
दिल चूर चूर है,
मुहब्बत रोती ज़ार ज़ार है,
क्या महसूस कर पाते हो तुम?

नाइंसाफ़ी और बेइंसाफ़ी की स्वर- संगति
एक अजब सी धुन बजाती है,
इन कानों में ज़हर सा घोलती है,
प्रेम गीतों की लोरी कभी सुनाती है,
बचपन के भय सा डरा जाती है
एक उलझन मानों सुुुलझने को है,
मंत्रों का वृंदावन सा उच्चारण,
परियों का सहगान
सुनाई देता है अब,
सब अहसास आँसू बन पिघलने लगे हैं,
सब हांथ तोड़ अविरल धारा बहने तगी है,
दर्द की लहरें दौड़ रही थीं मेरे जिस्म मे
कि अचानक वह दानव आ खड़ा हुआ
हमेशा के विछोह और विच्छेद का!
शायद अब तो महसूस कर पाये होगे तुम?

©मधुमिता

Language: Hindi
1 Like · 266 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
एक सांप तब तक किसी को मित्र बनाकर रखता है जब तक वह भूखा न हो
एक सांप तब तक किसी को मित्र बनाकर रखता है जब तक वह भूखा न हो
Rj Anand Prajapati
"जीवन का सबूत"
Dr. Kishan tandon kranti
स्थितिप्रज्ञ चिंतन
स्थितिप्रज्ञ चिंतन
Shyam Sundar Subramanian
मेरा प्यारा राज्य...... उत्तर प्रदेश
मेरा प्यारा राज्य...... उत्तर प्रदेश
Neeraj Agarwal
रात चाहें अंधेरों के आलम से गुजरी हो
रात चाहें अंधेरों के आलम से गुजरी हो
कवि दीपक बवेजा
वोट की खातिर पखारें कदम
वोट की खातिर पखारें कदम
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
#justareminderekabodhbalak
#justareminderekabodhbalak
DR ARUN KUMAR SHASTRI
पुरुष को एक ऐसी प्रेमिका की चाह होती है!
पुरुष को एक ऐसी प्रेमिका की चाह होती है!
पूर्वार्थ
एक वो है मासूमियत देख उलझा रही हैं खुद को…
एक वो है मासूमियत देख उलझा रही हैं खुद को…
Anand Kumar
कैसी ये पीर है
कैसी ये पीर है
Dr fauzia Naseem shad
चल फिर इक बार मिलें हम तुम पहली बार की तरह।
चल फिर इक बार मिलें हम तुम पहली बार की तरह।
Neelam Sharma
कृपा करें त्रिपुरारी
कृपा करें त्रिपुरारी
Satish Srijan
झूठा फिरते बहुत हैं,बिन ढूंढे मिल जाय।
झूठा फिरते बहुत हैं,बिन ढूंढे मिल जाय।
Vijay kumar Pandey
परीक्षा
परीक्षा
Er. Sanjay Shrivastava
दोहा
दोहा
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
राह हूं या राही हूं या मंजिल हूं राहों की
राह हूं या राही हूं या मंजिल हूं राहों की
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी"
हर शय¹ की अहमियत होती है अपनी-अपनी जगह
हर शय¹ की अहमियत होती है अपनी-अपनी जगह
_सुलेखा.
वंदनीय हैं मात-पिता, बतलाते श्री गणेश जी (भक्ति गीतिका)
वंदनीय हैं मात-पिता, बतलाते श्री गणेश जी (भक्ति गीतिका)
Ravi Prakash
यूँ  भी  हल्के  हों  मियाँ बोझ हमारे  दिल के
यूँ भी हल्के हों मियाँ बोझ हमारे दिल के
Sarfaraz Ahmed Aasee
दुःख हरणी
दुःख हरणी
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
मीलों की नहीं, जन्मों की दूरियां हैं, तेरे मेरे बीच।
मीलों की नहीं, जन्मों की दूरियां हैं, तेरे मेरे बीच।
Manisha Manjari
धीरे धीरे  निकल  रहे  हो तुम दिल से.....
धीरे धीरे निकल रहे हो तुम दिल से.....
Rakesh Singh
मुक्त्तक
मुक्त्तक
Rajesh vyas
3109.*पूर्णिका*
3109.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
मेरा चाँद न आया...
मेरा चाँद न आया...
डॉ.सीमा अग्रवाल
अगर जीवन में कभी किसी का कंधा बने हो , किसी की बाजू बने हो ,
अगर जीवन में कभी किसी का कंधा बने हो , किसी की बाजू बने हो ,
Seema Verma
इश्क़ जब बेहिसाब होता है
इश्क़ जब बेहिसाब होता है
SHAMA PARVEEN
निरंतर प्रयास ही आपको आपके लक्ष्य तक पहुँचाता hai
निरंतर प्रयास ही आपको आपके लक्ष्य तक पहुँचाता hai
Indramani Sabharwal
मनुष्य तुम हर बार होगे
मनुष्य तुम हर बार होगे
Harish Chandra Pande
ऐसा लगता है कि
ऐसा लगता है कि
*Author प्रणय प्रभात*
Loading...