क्या चाहता है ?
जलाकर बस्तियों को घर बनाना चाहता है।
खलीफा खौफ का मंजर बनाना चाहता है।
हुई नाकाम सारी साजिशें तो आज कल,
खुदा का नाम लेकर डर बनाना चाहता है।
इधर तालीम बांटी जा रही है , वो उधर,
किताबें बेचकर खंजर बनाना चाहता है।
शिकारी नोंचकर कर पहले समूचे जिस्म को,
परिन्दों के लिए अब पर बनाना चाहता है।
मुआफी दे भला कैसे कहो उस शख्स को,
मुसलसल मुल्क़ जो बद्तर बनाना चाहता है।
बहुत से लोग उससे बेवजह ही है खफा,
वतन जो हर कदम बेहतर बनाना चाहता है।
जमाना बस उसे पागल समझता है विनय,
महल जो रेत पर अक्सर बनाना चाहता है।