क्या खोया क्या पाया ….
क्या खोया क्या पाया ….
कुनबा सभी गया बिखर,बनता तिनका जोर
एक अहम आंधी उठी,चल दी सभी बटोर
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मेरे घर में जोड़ का ,कुछ तो करो उपाय
नासमझी नादान की ,कहीं समझ तो आय
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गया जमाना एक वो ,अब है दूजा दौर
जग वाले थे पूछते ,बाते घर की और
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नोट
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माया कलयुग में जहां ,दिखे नोट की छाप
सार दौलत बटोर के ,हुए वियोगी आप
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इस सूरत का आदमी,पायें कभी-कभार
बिना-गिने ही नोट को,सौपे गंगा धार
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दंगल दिखा कमा गए ,भारी भरकम नोट
प्रभु हमारे दिमाग वो ,फिट कर दो लँगोट
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नोट-काले जेब रखे ,उजली बहुत कमीज
तू भी राजा सीख ले ,धनवान की तमीज
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कितनी है संभावना ,फैला देखो पाँव
सीमित होती आय की,चादर जिधर बिछाव
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सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग (छ ग)