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13 Oct 2016 · 1 min read

क्या कहूँ मैं शब्द नहीं हैं मेरे पास व्यथा व्यक्त करने को

क्या कहूँ मैं शब्द नहीं हैं मेरे पास व्यथा व्यक्त करने को,
जिसे जन्म देकर पाला पोसा वो ही छोड़ गया मरने को।

नौ महीने गर्भ में रखा उसे, रही दुख सहती दिन रात मैं,
जन्म देकर भूल गयी दुखों को, भूल गयी सारी बात मैं।

राजकुमारों सी दी परवरिश, पूरी की मैंने हर फरमाइश,
सदा खुश रहे लाल मेरा बस एक यही थी मेरी ख्वाहिश।

पढ़ाया लिखाया उसे मैंने अपनी जरूरतों को मार कर,
नौकरी लगी उसकी ख़ुशी जाहिर की नजर उतार कर।

किया मनचाहा रिश्ता उसका, फिर की शादी धूमधाम से,
बदलने लगा धीरे धीरे वो नफरत होने लगी माँ नाम से।

उसके घर संसार में मेरे लिए कोई जगह अब बची नहीं,
मखमली गलीचों के बीच में माँ रूपी टाट उसे जची नहीं।

छोड़ दिया उसने बेसहारा गाय सा मुझे लाचार होने पर,
लगी गयी झूठी शान की काई मेरे बेटे रूपी खरे सोने पर।

दिल से अब भी उसकी सलामती की दुआ निकलती है,
सब्र है मुझे सुलक्षणा तुझ जैसों से दो रोटी तो मिलती है।

©® डॉ सुलक्षणा अहलावत

2 Likes · 1 Comment · 346 Views
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