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12 Nov 2018 · 1 min read

क्या कहूँ इंसान को

क्या कहूँ इंसान को क्या हो रहा है
हर घड़ी ईमान अपना खो रहा है

गिर गया है ग्राफ़ मानवता का नीचे
अपने नैतिक मूल्य मानव खो रहा है

अब नहीं है दर्द की पहचान मुमकिन
हँसते-हँसते आदमी अब रो रहा है

आधुनिक बनने की चाहत में कहीं तू
कांटे राहों में किसी के बो रहा है

घुल गए हैं पश्चिमी संस्कार इतने
नाच बेशर्मी का हरदम हो रहा है

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