क्या और दूं तुमको प्रिये,अर्पण किया१
आधार छंद – मधुवल्लरी
मापनी- 2212 2212 2212
पदांत – किया,समांत – अन
क्या और दूं तुमको प्रिये,अर्पण किया।
हर सांस तेरी मान कर, वंदन किया।।(१)
तू तो अकेला चल रहा था मार्ग में,
कीं दूर सारी दूरियां,बंधन किया।।(२)
तोड़कर बंधन जगत के इस प्यार में
मैं प्यार में पागल हुई अर्चन किया।।(३)
मैं हो गयी थी बावरी सी प्यार में,
तब प्यार ने तेरे मुझे कंचन किया।(४)
जब हार कर तुम हो गये बेजान से,
दे साथ तेरा प्यार से रंजन किया।।(५)
जब भीर तुम पर आ पड़ी कर्त्तव्य की,
तब आ गयी मध्यस्थ में मंचन किया।।(६)
जब पीर से कुछ असहज बेचैन थे,
तब कान में कुछ गीत गा गुंजन किया।(७)
मैं घूमती हर पल रही हूं आज तक,
तेरे इशारों पर सदा नर्तन किया।(८)
??अटल मुरादाबादी✍️?