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20 Mar 2020 · 2 min read

क्या असर पड़ेगा

क्या असर पड़ेगा आपके दिलोदिमाग में आपके बच्चों के मनोभाव में जब सुबह-सुबह आप रेप,बलात्कार और ऐसे ही शब्दों को अनेक बार सुन लें तो।

ज़ी हाँ मैं बात कर रहा हूँ ऐसे मुद्दे पर जो करनी भी उतनी ही ज़रूरी है जितना कुछेक इसे ज़रूरी नहीं समझ पाते। ऐसा वो पहली मर्तबा नहीं करेंगे, ये उनकी कुंठित सोच बन गयी है। मैं लेफ्ट-राइट की बात अभी नहीं कर रहा हूँ।

एक़ ज़माना हुआ करता था, अब शायद ही कभी ऐसा दौर आएगा जब कोई न्यूज एंकर या रिपोर्टर टीवी पर आकर किसी भी न्यूज़ को सहूलियत से जनता के सामने रखकर अपनी बात पूरी कर देता था।

आज का दौर गर्मागर्मी का हो गया है, बिना उत्तेजना के कोई भी एंकर अपना काम पूरा नहीं करता, इसके समक्ष बुलाये गए मेहमा-नवाज़ी वाले डिबेटकर्मी भी छांटे हुवे बुलाए जाते हैं जो किसी भी मुद्दे को कहीं से कहीं और भटकाने का काम तो करते ही हैं, साथ में गूंगी-बहरी और नासमझ जनता को बरगलाने का काम भी बखूबी करते हैं और हद्द तो तब तो जाती है जब हम साधारण लोग साथ ही इनमें पढ़े-लिखे युवा ज्यादतन उनके झांसा में आकर अपने आपसी रिश्तों में रंजिश को नया जन्म देते हैं।

बहुत खुशी हुई सवेरे-सवेरे TV पर ये ख़बर पढ़कर कि आरोपियों को फाँसी दे दी गयी, सम्भवतः आगे की प्रक्रिया भी हो जाएगी। मग़र किचन में चाय बनाते-बनाते बमुश्किल से 8-10 मिनट के समय में ये टीवी के एंकरों द्वारा- रेप-रेप-रेप-रेप-रेप-रेप-रेप-रेप-रेप-रेप-रेप-रेप-रेप-रेप-रेप-रेप-रेप-रेप-रेप-रेप-रेप-रेप-रेप-रेप-रेप-रेप-रेप-रेप-रेप
ठीक इतनी ही बार इस शब्द को बोला।

इस खबर को आधे घण्टे का न बनाकर पाँच मिनट का भी बना दिया जा सकता था। मग़र सब यही चाहते हैं हल्ला हो, उत्तेजना हो, शोर हो, भगदड़ हो, उथल-पुथल हो ऐसा करने से स्वाभाविक है कि प्रातःकाल का कोमल मन पर नाकारात्मक प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है।

जो ऐसे गहनता के साथ सोचें तो वो खुद को ऐसे मुद्दों से हटाकर दिशा बदल सकता है, अपितु हरेक घर में और भी लोग हैं- खासकर छोटे बच्चे हैं उनके ज़हन में न जाने कौनसी कुबुद्धि का संचार होता है ये सभी नहीं जान पाते।
हमें ऐसे जटिल मुद्दों पर सोचने और मनन करने की अत्यंत आवश्यकता है, आख़िर बच्चे देश का भविष्य होते हैं।

✍️Brijpal Singh

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Comments · 442 Views
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