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26 Dec 2019 · 1 min read

कोहरा सा जिंदगी में जमता जा रहा है

कोहरा सा जिन्दगी में जमता जा रहा हैं
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कोहरा सा जिन्दगी में जमता जा रहा है
इन्सान ही इन्सान को ठगता जा रहा है

गहरी धुंध सी छाई रहती अब रिश्तों में
रिश्ता बस किश्तों में निभता जा रहा है

शबनम की बूंदों सा होता है सच्चा प्यार
जो अब जिन्दगी में घटता ही जा रहा है

आँखे जो बयां कर देती थी मोहब्बत को
आँखों में अब जाला बढता ही जा रहा है

दिल धड़कता है,जब होता है कभी प्यार
यह दिल सरेबाज़ार बिकता ही जा रहा है

शर्म हया जो होती है गहना मोहब्बत का
शर्म हया का घुंघट ऊपर उठता जा रहा है

यकीन पर टिका होता है रिश्ते का आधार
सुखविंद्र यकीन का स्तर गिरता जा रहा है

कोहरा सा जिन्दगी में जमता जा रहा है
इन्सान ही इन्सान को ठगता जा रहा है

सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)
9896872258

Language: Hindi
2 Comments · 193 Views
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