कोरोना बहरूपिया
कोरोना वायरस
जीव और निर्जीव की ऐसी कणी
जिसने सम्पूर्ण मानव सभ्यता को
एक साथ एक ही समय अनिश्चित कर दिया
मनुष्य की गति को बहुत धीमा कर दिया
समय अपनी निरन्तरता में वैसे ही चलता रहा
हर रोज सूरज उगता और उसी तरह पश्चिम में डूबता
हवा भी ठंड से गर्म और फिर मानसूनी होते हुए फिर ठंडी हो गई
तारे भी हर रोज की तरह दूर अंतरिक्ष में टिमटिमाते रहते
उल्का पिंड भी हर रोज आसमान में गिरते टूटते
इंसानो को छोड़कर पृथ्वी के अन्य प्राणी
ज्यादा आजाद और ज्यादा उन्मुक्त हो गए
नदी झरने सागर तालाब सब अपना रंग रूप निखारने लगे
किन्तु मनुष्य जो पृथ्वी का सबसे बुद्धिमान
प्रकृति का शिकार करने बाला शिकारी
इस जीव निर्जीव कणी का शिकार हो गया
विवश है असहाय है लाचार है
पर कोई तोड़ कोई मजबूत शस्त्र नही मिल रहा
कुछ तोड़ निकला तो वायरस और मजबूत हो गया
नया रूप ले लिया
शायद इंसानो से सीख लिया बहरूपिया होना
बोलना कुछ, करना कुछ ,दिखाना कुछ….