कोरोना जिंदगी भर के ज़ख्म दे गया
साँसों से उतर कर साँसों में
जिंदगी की साँसे ले गया
जो दिखा नही आँखों से
वो जंग में शिकस्त दे गया
कोरोना जिंदगी भर के लिए
ज़ख्म दे गया ।
कोई मेरी गोदी में तड़पता रहा
कोई मेरे सीने से चिपक कर
मुझको अकेला कर गया
कोई मेरे हाथों में
तो कोई रास्ते में ही रास्ता बदल गया
कोरोना जिंदगी भर के लिए
ज़ख्म दे गया ।
वक्त से जीतकर मैं
तूने फक्र से सर उठाया ही था
मेरे पिता,
अभी तो वक्त आया ही था
कि वक्त तुझसे मेरा बदला ले गया
कोरोना जिंदगी भर के लिए
ज़ख्म दे गया ।
मेरी माँ
अभी तो मैं तेरे आँचल में
जी भर कर सोया भी नही था
तेरे स्पर्श से सौभाग्य लिया भी नही था
मेरा जीता हुआ सब राख हो गया
कोरोना जिंदगी भर के लिए
ज़ख्म दे गया ।
सूनी रसोई है
खामोश बर्तन है
बेहोश बेडरूम मेरा
और घर समशान हो गया
मुझे अकेला कर जिंदगी को पत्थर कर गया
कोरोना जिंदगी भर के लिए
ज़ख्म दे गया ।
आँखों से वो पल गुजरता नही
तेरी बन्द होती साँसों को देख कर
मेरी साँसों में जिंदगी का साया
जिन्दा कैसे रह गया
कोरोना जिंदगी भर के लिए
ज़ख्म दे गया ।
अभी होश संभाला भी नही था
दूध के दाँतों का झड़ना
नये दांतों का निकलना रुका भी नही था
पत्थरों से बचकर मार्ग में
चलना सीखा भी नही था
कि लकड़पन के सिर से
माँ-बाप का साया उठ गया
कोरोना जिंदगी भर के लिए
ज़ख्म दे गया ।
कोई अनाथ
तो कोई बेसहारा हो गया
कोई तड़फता रहेगा
कोई दम तोड़ कर आगे बढ़ गया
हरे-भरे दरख़्त को
पल भर में सूखा पेड़ कर गया
कोरोना जिंदगी भर के लिए
ज़ख्म दे गया ।
मैंने देरी कर दी..?
मैं लापरवाह हो गया..?
मैं समझ नही सका..?
मैं मुर्ख हो गया..?
कंजूसी मेरी मिट्टी का ढेर हो गया..?
तेरी साँसे उखड़ती रही
और मैं साँसे गिनता रह गया
कोरोना जिंदगी भर के लिए
अनसुलझे सवाल दे गया ।