कोरोना और उसका दुष्प्रभाव
लेख
कोरोना और उसका दुष्प्रभाव
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जब से कोरोना आया है ,उसने हमारे जीवन के हल पहलू को किसी न किसी रुप में प्रभावित किया है।
हमारी रोजमर्रा की जिंदगी लगभग बिखर सी गई है,घर की व्यवस्था बिगड़ गई, बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो गई, लोगों का घरों से डर डर कर निकलना हो रहा है।एक खौफ हमारे मन:मस्तिष्क पर हावी हो गया है,खुद व परिवार की सुरक्षा का डर हर समय दिमाग में घूमता रहता है।डर के कारण छोटे बच्चे घरों में कैदी बन रह गये हैं।बुजुर्गों की अलग ही समस्या है।बीमारी के डर से जो सुबह शाम थोड़ा घूम टहल कर मन बहला लेते थे,कुछ अपने संगी साथी, हम उम्र लोगों से मिलकर प्रसन्न हो लेते थे,वो सब बंद हो गया।हालांकि घूमना टहलना यानी मार्निंग वाक तो सभी का लगभग बंद है।
इसमें अगर कहीं बीमार हो गये डाक्टर हाथ तक लगाने से कतराते हैं।बस दूर दूर से दूर से अछूतों की थरह व्यवहार करते हैं।गंभीर मरीजों के लिए तो बस। भगवान का ही भरोसा रह गया है।एक कड़ुआ सच ये है कि जितने लोग कोराना से मरे हैं या मर रहे हैं उससे कहीं अधिक लोग समय से इलाज न मिलने, डॉक्टर की उपेक्षा अथवा चलताऊ इलाज से मर गये और मर रहे हैं।जाने कितने लोग समय से आपरेशन के अभाव में काल कवलित हो गये।प्रसव तक में अमानवीय व्यवहार की खबरें हमारी मानवीय संवेदना और कर्तव्यों की हंसी उड़ा रही हैं।
ऊपर से रोजी रोजगार पर पड़े असर ने जीवन दुर्लभ कर दिया है।रोज कमाने खाने वाले,पटरी दुकानदार, छोटे व्यवसायी, और लोगों के घरों दुकानों में काम करने वालों के लिए तमाम तरह की दिक्कत खड़ी हो गई।
कुल मिला कर यही कहा जा सकता है कि हम सब भारतीय ही नहीं देश भी दस साल पीछे हो गया है,वो भी तब जब कोराना आज खत्म हो जाय।लेकिन ऐसा लगता नहीं है।कोराना तो जैसे बिन बुलाए मेहमान की तरह जोंक की तरह हमारी जिंदगी से ही चिपक गया।
संक्षेप में कहा जाय तो कोराना ने मानव समाज की हर सुविधा/व्यवस्था को तहस नहस कर दिया है।
■सुधीर श्रीवास्तव