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10 Apr 2021 · 1 min read

कोई तो लौटा दे मुझे मेरा वै बचपन

कोई तो लोटा दे मुझे मेरा वोह बचपन ,
धूल भरी गलियां और गलियों में बीता बचपन।
चाचा औ चाची की मीठी-मीठी वो बातें।
दुनिया के झंझट से बेपरवाह वो रातें।
अम्मा के आँचल कीठंडी वोह छांव ।
बरखा के पानी में तैरती वोह नाव।
चाक के गरमागरम गुड़ का वोह स्वाद।
मक्के की रोटी ,बथुए और सरसों का साग।
अमुआ की डाली पे खेले वोह खेले।
गांवन की गलियन में लगतेवोह मेले।
रस्सी पे चलती वोह नटवा की बाला।
गंगा के मेले का वोह तिलस्मी तमाशा।
यादआतें हैं वोह दिन,
सताते हैं वोह दिन।
ढूँढूँ कहाँ वोह बचपन मैं अपना।
अब तो लगता है वोह महज़ एक सपना।

Language: Hindi
189 Views
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