कोई तो लौटा दे मुझे मेरा वै बचपन
कोई तो लोटा दे मुझे मेरा वोह बचपन ,
धूल भरी गलियां और गलियों में बीता बचपन।
चाचा औ चाची की मीठी-मीठी वो बातें।
दुनिया के झंझट से बेपरवाह वो रातें।
अम्मा के आँचल कीठंडी वोह छांव ।
बरखा के पानी में तैरती वोह नाव।
चाक के गरमागरम गुड़ का वोह स्वाद।
मक्के की रोटी ,बथुए और सरसों का साग।
अमुआ की डाली पे खेले वोह खेले।
गांवन की गलियन में लगतेवोह मेले।
रस्सी पे चलती वोह नटवा की बाला।
गंगा के मेले का वोह तिलस्मी तमाशा।
यादआतें हैं वोह दिन,
सताते हैं वोह दिन।
ढूँढूँ कहाँ वोह बचपन मैं अपना।
अब तो लगता है वोह महज़ एक सपना।