कोई तो आये ….( कविता)
कोई तो आये ….( कविता)
मेरी चमन सी जिंदगी को ,
बना दिया किसी ने खार
इंतज़ार है मुझे
कभी तो आयेगी फिर बहार .
कही से तो आये एक फ़रिश्ता ,
जो जोड़ दे मेरा टुटा हुआ दिल .
सारे गम भुला दे ,
मीठी-मीठी बातें करे हिलमिल .
जगी है तिशनगी ,
की कोई पिलाये आबे-हयात .
इतनी खुशियाँ दे जिसे
तरसा करती है हयात।
मेरे खवाब, मेरे अरमान,
और मेरी आर्ज़ुयें ,
जो है इनका मरकज़ ,
है उसी के लिए सिर्फ मेरी दुआएं .
वोह गर मुझे मी जाये तो ,
ठुकरा दूँ सारी दुनिया को .
उस पाक,मुक़द्दस रिश्ते के लिए
तोड़ दूँ हर रिश्ते को।
क्या करना है ऐसे कागज़ के फूलों का ,
जिसमें रंग है,रूप है मगर महक नहीं।
पग डंडियाँ है यह टेडी-मेडी ,काँटों भरी ,
कोई फूलों भरी सड़क नहीं ,
या मखमली कालीन भी नहीं।
यह है दो धारी तलवार ,
जिससे घायल है मेरे जिस्त -ओ-जान।
देखके मेरे अश्कों को भी ,
जो नहीं पिघलताीं।
ना ही काँपता ईमान।
कोई तो आये जो दे निजात,
इस दोजख से ,
कोई तो आये ! जो पल में संवार दे
यह उजड़ा हुआ चमन ,
मेरा जीवन।
कोई तो आये — कोई तो——!