— कैसे न कहूँ —
इतने ग़मगीन माहौल में
पैसा कहाँ से आता है
एक तरफ शमशान जल रहा
उधर वो देव दीपावली मनाता है
देश के मुखिया को मस्ती के हाल में
देख के मन में यह सब आता है
एक तरफ तो मौत का मंजर है
उधर सारा बनारस इठलाता है
अच्छा लगता है सब देखना
किस को यह सब नही भाता है
मनाओ जोर शोर से सब त्योहार
पर ऐसे माहौल में यह कहाँ भाता है
लोगों के जीवन से खुशियन चली गयी
घर घर से रोजगार की मांग बढ़ गयी
बनारस के संग सब मस्ती में डूब गए
उस से पूछो जिस के घर से फिर अर्थी उठ गयी
नहीं रोक सकता “अजीत” अपने शब्दों को
यह देव् दीपावली में वहां की रौनक बढ़ गयी
करो मुखिया जी आप ऐसे ऐसे काम ,जिस को
देखने को हर घर की आँख तरस गयी
अजीत कुमार तलवार
मेरठ