” ——————————————- कैसे काटें रतिया ” !!
नज़र चुराकर नज़र मिलाते , होते हैं जो छलिया !
खेल खेल में हंसी चुरा ले , होते जो मनबसिया !!
हंसी हंसी में ठग जाते हैं , ऐसे हैं सौदाई !
आंखों से नीदें ले उड़ते , कैसे काटें रतिया !!
मीठी यादें जुड़ जाती हैं , अलग थलग पड़ जाते !
आंखें खोयी खोयी रहती ,कान धरें ना बतियाँ !!
यहाँ वहाँ की लोग सुनाते , हम खुद में ही डूबे !
भूले से कोई नाम तेरा ले, धड़क जाए है छतियाँ !!
रोग प्रेम का गले पड़े है, जाने अनजाने से !
कड़वे घूंट कभी मिलते हैं , कभी मिले सरबतिया !!
दिल हारे सब कुछ हारे हैं , ऐसी हार मिली है !
जीत हार में ढूंढें हम भी , ऐसे हैं हर्षितिया !!
बृज व्यास