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24 Mar 2017 · 1 min read

कैसें दिखे स्वराज,हृदय है जब बिन भाव

भाव बिना गणतंत्र दिन, घटना बना सुजान|
गुण गायन कर बीर का, भूले दे सम्मान||
भूले दे सम्मान, चल गई भ्रम की आँधी|
फूल-माल गह टँगे, पुनः खूँटीं पर गांधी||
कह “नायक” कविराय, चली पुनि जग की नाव|
कैसें दिखे स्वराज, हृदय है जब बिन भाव||

बृजेश कुमार नायक
“जागा हिंदुस्तान चाहिए” एवं “क्रौंच सुऋषि आलोक” कृतियों के प्रणेता

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