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24 Mar 2017 · 1 min read

के लिए

गजल की शक्ल में कलम घिसाई
212 212 212 212

कौन डरता यहाँ निज कफन के लिए।
चाहिए मौत हमको वतन के लिए।**0**

राज सुखदेव ने वार तन को दिया।
फिर भगत भी मिटे इस चमन के लिए।*1*

लील सड़के गई जी बहुत जिन्दगी।
सोचते हम रहे बस जतन के लिए।*2*

काम कुछ भी करो ना डरो यार तुम।
काम करना सदा जग नमन के लिए।*3*

काम कर लो अभी वक्त है काम का।
जिंदगी शेष सारी भजन के लिए।*4*

सादगी से रहो सादगी से सजो ।
तुम सजो जब भी सजना सजन के लिए।*5*

पाक नापाक हरकत से आ बाज तू ।
खाक भी ना मिलेगी दफन के लिए।*6*

राम आदर्श है सीखते उन्ही से हम
चल दिए वन निभाने वचन के लिए।*7*

चाँद की चाँदनी भी जलाने लगी।
ठंड लाये कहाँ से गलन के लिए।* 8*

आदमी जल रहा आदमी से यहाँ।
शय बची ही कहाँ अब जलन के लिए।*9*

बाँट हमने धरा को लिया दोसतो।
जंग जारी हमारी गगन के लिए।*10*

***** मधु गौतम

छोड़ दे सारी दुनियां किसी के लिए—– धुन पर गाई जा सकती है।

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