कृषक*जेठ की दुपहरी*
५)
“कृषक ”
जेठ की दुपहरी।
भानु दिखा रहाथा,आँखें छरहरी।।
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सर पर तपती धूप
धूप का क्रूर रूप,
वो बो रहा है
पसीने में तर बतर हो रहा है;
लेकिन आँखों में एक चमक ठहरी।
जेठ की दुपहरी।।
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घटाओं का दूर -दूर तक,न था कोई नामो निशान ,
लेकिन कर्म-पथ पर निरंतरहै अग्रसर,हुए बिन परेशान;
आशान्वित है बन कर एक प्रहरी।
जेठ की दुपहरी।।
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सूखे पत्तों की सरसराहट में ,सुनाई देती है सरगम;
हवा का झोंका जब बदन को छूता है,भूल जाता है वो सारे गम।
और एक नई किरण जग जाती है
तब वो लेता है साँस गहरी।
जेठ की दुपहरी।।