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30 May 2021 · 1 min read

‘ कुदरत की चेतावनी ‘

ये बरखा बहार है
देती करार है
सूखी धरती पर
लोगों की आस पर
आशीर्वाद की फुहार है ,

इसका इंतज़ार है
दिल बेकरार है
तकती आँखों को
रूकती साँसों को
सूरज से तकरार है ,

कर्जे का बोझ है
पानी की खोज है
उम्मीद को जगाये
बीजों को भिगाये
हिम्मत और ओज है ,

शीश नमन है
मौसम का दमन है
अब तो बरसाओ
नही और तरसाओ
हमारा ये चमन है ,

गलती हमारी है
हाथ में आरी है
काटेगें पेड़ो को
खोदेगें जड़ों को
सबके भुगतने की बारी है ,

हुआ ये कहर है
करनी नई सहर है
परिस्थितियों से दहल जाओ
देखो तुम संभल जाओ
नही तो ज़हर है ।

स्वरचित , मौलिक एवं अप्रसारित
( ममता सिंह देवा , 30/05/2021 )

1 Like · 2 Comments · 459 Views
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