कुण्डलिया
प्यारी वसुधा आ गयी, नैमिष तक है साथ ।
मैया का दर्शन करके, हम सब हुए कृतार्थ ।
हम सब हुए कृतार्थ, जगत पालक है माता।
हम बालक नादान, समर्पण हमको आता ।
कह प्रवीण कविराय, ज्ञान से हमको यारी
।लखनऊ में हैं आप, मुस्कुरा वसुधा प्यारी।
डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव,” प्रेम”