कुछ मत पूछो ! (ग़ज़ल)
मत पूछो की कितने ज़ख्म खाए हुए हैं ,
हम तो दौर -ऐ- हालात के सताए हुए हैं। .
यह पेशानी की सिलवटें, सुर्ख बेनूर आँखें,
दम तोडती तबस्सुम,रंजो-गम से नहाये हुए हैं।
छाई है इस कदर बेखुदी की क्या कहिये !,
दर्द पे है हँसते औ लबो पे आहों के साये हैं।
गुरुर की बुलंद आवाजें और हमारी ख़ामोशी,
किसकी होती जीत? अनु भी सब्र किये हुए है।