Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
12 Dec 2016 · 9 min read

कुछ तूटा है दिलमें…

कुछ टूटा है दिल में

…. मानसी बहेेती नदी की लहरों को रेलिंग के पास खड़ी हुई एकटक देखे जा रही थी ।बस ,ये ज़िंदगी तो यूँही बहेती जा रही है ।और उसका पूरा भावविश्व एक जगा जैसे ठहर गया है । बचपन के दिनों में यहाँ बैठकर पापा मम्मी के साथ खुशियो की फुहारें उड़ा करती थी ,घंटों बैठकर बातें किया करते ,, छोटी छोटी बातें और अपने अंदर उठते हर मासूम से सवालों को पूछा करती। साथ में जब जब पडोश में रहता विमुख भी आता तो बातें और बढ़ जाती और दोनों के बीच मे हो रही बहस को सब हसते हुए सुनते रहते ।छोटी छोटी बातों पर चिढ़ जाना और फिर थोड़ी देर में किसी नयी बात ही शुरू हो जाती ।। चुटकियों में जैसे पूरा एक कोहराम सा दिल में उठा और शांत हो गया ।आंखो के सामने से सब बातें और दिनों के पंछी तो पलक झपकते ही उड़ गए ।पढ़ाई और एक्टीविटी में इतने गुम हो गए की छोटी छोटी बातें और किसी के पास होने का अहेसास ही भूल चले थे।स्कूल तक तो ठीक था ,रोज मिलकर ऐसे ही पिक्चर की बातें ,कभी मिलकर गाना गाते और अगर भेल या चाट बनायी हो तो एकदम से पुरे फ्लोर पर धमाल मच जाती और सब मिलकर शाम का खाना भूलकर सिर्फ गोलगप्पे मंगवाकर छोटी−सी पिकनिक ही कर लेते।

लेकिन जैसे कॉलेज स्टार्ट होते ही सब लोग ऐसे अहेसास कराने लगे जैसे हम अब बड़े हो गए है और हमें जिम्मेदारी से अपना स्टडीज ख़त्म करके लाइफ में कुछ बनना चाहिए ।। मम्मी और कज़िन वगैरह भी बचपना छोड़कर लड़कों से दूर रहने की सलाह देते ।विमुख जब भी आता तो उसे कुछ ना कुछ बहाना बनाकर ,अभी पढ़ रही हे या कोई सहेली आयी है ,कहकर टाल देते ।जैसे एक अनदेखी दीवार खिंच गयी थी हमारे बीच ,विमुख को काफी दूर यूनिवर्सिटी में दाखिला मिला और उसका भी काफी समय आने जाने में निकल जाता ।घर पर रात को अपने रूम मे बैठकर टीवी देखती थी और मम्मी रूम में अलमारी के सब कपड़े ठीक कर रही थी।और वो….. मोबाईल से विमुख के साथ बात कर रही थी तो मम्मी अचानक से

”इतनी रात किसी लडके से बात करना अच्छा लगता है क्या ?’

‘किसीसे का क्या मतलब ?विमुख ही तो है .’

‘हां ,लेकिन अब तुम बच्चे थोड़े हो ?फ्रेंड हो फिर भी कुछ डिस्टेन्स रखना चाहिए .यूं अगर सबसे घुल−मिलकर बातें करेगी तो सब लोग क्या सोचेंगे ?’

‘मम्मा,तुम भी ना बस ऐसे ही अपने ज़माने की बातें याद करके मन में जो डर बैठ गया है उसी की वजह से मुझे रोक रही हो ,अब कहा क्सिको किसीके बारे में सोचने का टाइम है ?और अब तो समय कितना बदल गया है’

”मानसी ,समय औरतों के क लिए कभी नहीं बदलता ,वो किसी न किसी बहाने लड़कियों के अस्तित्व पर अपने अद्रश्य पंजों की छाप छोड़ जाता है और हमें पता भी नहीं चलता ।कही किसी गलतफहमी की वजह से हंमेशा हमें ही सहना पड़ता है।

”ठीक है मम्मी ‘

कहकर सोने की तैयारी करने लगी ।लेकिन ,ऐसे ये सब सुनकर नींद थोड़ी आनेवाली थी ?देर तक सोचती रही ।कितना खालीपन लग रहा था ?जैसे कल−कल बहेता पानी रुक गया हो और वो कीसी हिमनदी के पास बैठकर सामने के किनारे पर खड़े हुए विमुख की ओर देख रही हो और धीरे धीरे वो भी आँखों से ओज़ल हो रहा हो ।कॉलेज के नए माहौल मे वैसे तो काफी नयापन था और दोस्तों की भी कुछ कमी नहीं थी लेकिन ….शायद अपने आसपास जो ये दायरा बन रहा है वो सब एक अनदेखी ज़ंज़ीर की तरह उसे जकड़ रहा है ।दिल मे सहज से विकसित हुए एक कोमल से पौधे पर छोटी सी रंगीन कलियाँ खिली और अचानक वो कांटो से घिरने लगी ।ये कांटे हमें बचाते भी है लेकिन उनकी पैनी नज़रे हमें सदा निहारती रहती है और हम शायद अपना खिलना सिकुड़ लेते है ।तकिये पर गिरे आंसू की गीली खुशबु और बिखरी लटो का सूखापन महसूस करते हुऐ आँख लग गई ।फिर नइ सुबह थी जहाँ−कहीं अपनी सोच को और पैना करते हुए मानसी लाइब्रेरी में नयी आयी हुई यूथ पत्रिका पढ़ रही थी .और …..राहिनी चली आ रही थी सामने से किसीके साथ ।

‘अरे वाह,आज ही रिलीज़ हुई और पढ़ भी ली ?तू आज तो कैंटीन में भी नहीं दिखी? .’ अौर साथमें खड़े हुए युवक की ओर हाथ करके इंट्रोड्यूस करवाने लगी ।

‘ये नियत ,है दूसरी कॉलेज से लेकिन हमारे यूथ फोरम का काफी सक्रीय सभ्य है तुम्हें ओर एक सरप्राइज़ दूँ ? ये जो पत्रिका है उसमें नियत की लिखी हुई कहानी छपी है ‘

”ओह तो ये नियत शर्मा आप ही हो ?बहोत ही सेंसिटिव लिखा है ,मैंने अभी थोड़ी देर पहले ही पढ़ी आपकी कहानी’

”थैंक्स ,आप के जैसे रीडर का प्रतिभाव भी जानना चाहूँगा ,मेरे fb पेज पर भी रखा हि है आप ज़रूर अपनी प्रतिक्रयाऐ सेंड कीजियेगा ‘

‘जी ,जरूर ‘

‘ठीक हे ,मानसी अब हम सर से मिलकर कुछ नए प्रोग्राम डिस्कस कर रहे है ,कल मिलते है ‘

मानसी वापस अपनी चेयर पर बैठ गयी और धीरे से पसँ में से निकालकर अपनी लिखी हुई कुछ कविता एँ देखने लगी ।प्यार की कल्पना ओं से भरी बातें, तो कही कुदरत से जुडी लाइने और एक सिसकती हुई ताज़ी पंक्ति जो बस ऐसे ही मोबाईल पर लिखकर विमुख को व्हाट्सअप कर दी थी ।अभी तक उस पंक्ति में मानसी के दिल का पूरा दर्द कहां उतर पाया था ?ओर एक लंबी सांस लेकर के क्लास की और चल दी ।सामने से आता हुआ उसका एक क्लासमेट बैडमिंटन रैकेट घुमाता हुआ पास से गुजरा ,

‘हाय ,कैसी हो ?क्या फ्री टाइम में भी लाइब्रेरीमे बैठी रहती हो ?’

और मानसी हँसकर सीढ़ियाँ चढ़ने लगी ।बहोत अच्छा लगता था उसे ये खुलापन ,लेकिन हर रिलेशनमें कुछ ज़ीजक सी आ गयी थी ।जाने अनजाने अपनी फीलींग्स पेन, पेपर और शब्दों में ही ढलकर रह गयी थी ।दो तीन दिन बाद नियत ने अपने कॉलेज में जो पंद्रह दिन बाद यूथ -मंच का प्रोग्राम था उसे फेसबुक पर मैसेज भेजकर इनवाइट किया ,और कहा था की अगर तुम भी अपना लिखा हुआ कुछ सुनाना चाहो तो मोस्ट वेलकम ‘।और उसे थेन्कस का मेसेज भेज दिया ।फंकशनवाले दीन निकलते वक्त थोड़ी बारिश हो रही थी ,अपार्टमेंट के बहार ही ऑटो के लिए खड़ी थी ।इतने में विमुख भी कॉलेज के लिए निकल रहा था,

‘क्या बात हे ,आज तो जल्दी जा रही हो ?इतने दिनों से तो कभी दिखी ही नहीं ?अरे, ऐसे तो भीग जाओगी ,किसी ऑटो के रुकने तक मेरे छाते में ही खड़ी रहो .’और मानसी अपना लेपटॉप,पर्स संभालती हुई साथ में खड़ी हो गयी ।भीगा हुआ चहेरा रूमाल से पोंछ रही थी और विमुख एकटक उसे देखे जा रहा था

‘बहुत अच्छा लिखा है ,पचासों बार पढ़ चुका हूँ लेकिन जवाब देना नहीं आता ,खूबसूरती की तारीफ भी सीखनी पडेगी”

‘तुम कॉमर्स के स्टूडेंट जो ठहरे और हमारे जैसी कोमल भावनाये कहा होती है लड़कोंमे ?”

‘अच्छा इतनी सुहानी बारिश में मेरी खिंचाई करने की ठान रखी है क्या ?’
और इतने में एक जाती हुई ऑटो हाथ देखकर रुक गयी और बाय कहती हुई मानसी निकल गयी ।ठंडी हवाओ के ज़ौके और बारिश के छींटो का आनंद लेते हुए मन ही मन मुस्कुरा उठी ।नियत के कॉलेज यूथ फंक्शन में पहुची तो पहले से काफी चहलपहल थी ।नियतका तो इंजीनिअरिंग का लास्ट यर था और ये लास्ट यर वो बहुत ही मज़े से मनाना चाहता था ।। बहुतही मज़ेदार प्रोग्राम रहा और मानी ने भी अपनी एक कविता सुनाई ।सबने बहुत ही एप्रिशिएट किया और मानसी को लगा की कुछ तो जिया.. इतने में ,नियत के पापा मम्मी और भाई से इंट्रोड्यूस करवाया ,और जनरल पूछते हुए अचानक से बोले ,

‘अरे तुम शरदजी पंड्या की बेटी हो ?वो तो हमारे ज्ञाती के मंडल के प्रमुख भी है और नियत की मम्मी भी विशालाजी को जानती है ‘

‘हां ,तुम्हारी मम्मी और हम तो काफी बार मिलते रहते है ,आओ कभी घरपर ,मैं फोन से बात करुँगी .’और जस्ट स्टडी वगैरा की बातें करते हुए निकल गये ।नियत ने कहा ,

‘,प्लीज़ ज़रा रुकना हां ,घरपर फोन से लेट होगा बोल दो .’

और सब मिलकर काफी देर बातें करते रहे ,बीच में विमुख के दो तीन वोटसप मेसेज आये हुए थे। और जल्दी से घरपर जाकर बात करने का बहुत मन था ।

‘चलो, तुम्हें घरतक छोड़ दूँ,’

कहकर नियत पार्किंग की और जाने लगा और कार में साथ जाते हुए अपने फ्यूचर प्लान बताने लगा ।

‘मैं तो अपने पापा का नोएडा में इंजीनिअरिंग यूनिट ही ज्वाइन कर रहा हु ,और वॅंही रहूँगा ,नज़दीक ही है नोएडा तो सन्डे मिलने भी आ सकते है ।मास्टर्स करने की कोई इच्छा नहीं है ,वैसे भी पापा अकेले हो जाते है ,मैं उसी में डेवलोपमेन्ट करने का सोच रहा हुॅ .’

और घडी देखती हुई मानसी को ‘कहां ध्यान है तुम्हारा ?लेट हो गया उसी वजह से टेंशन कर रही हो ?’

‘नहीं ,बस ऐसे ही …’कहकर चूप हो गयी’

और अपार्टमेंट के दरवाजे के पास उतरते हुए गुड़ नाइट कहकर जल्दी से अंदर जाने लगी ,तभी उसकी नज़र बाल्कनी में खड़े हुए विमुख पर पड़ी ,और गुडनाइट का व्हाटअप मेसेज कर दिया ।.घर पर सब बातें करते हुए काफी देर हो गई और नींद लग गयी ।दूसरे दिन नास्ते पर पापा मम्मी तो एकदम मूड में थे, फोन से अगले सन्डे नियत और फेमिली के साथ खाने का प्रोग्राम भी बना लिया ।समय बस ऐसे ही बीतता चला जाता था और सब जिंदगी की जीत के लिए अपने पत्ते खेलते जा रहे थे।एक्ज़ाम्स ख़त्म होते ही मन में काफी बातें सोच रखी थी लेकिन एक शाम पापा मम्मी ने नियत के घर से मानसी के लिए रिश्ता आने की बात बतायी और इक करारी हवा दिल में घूम गयी ।एक पल के लिए पलकें झपकी और खिड़की के बाहर बैठा हुआ मीठा सा तोता फर ररर्रर्र….से उड़ गया ……पत्ते एकदम उदासी से हिल रहे थे ,मानसी कुछ मध्यम सी आवाज़ में बड़बड़ाई और मम्मी ,अपने ही ख़ुशी के अंदाज़ में बातें किये जा रही थी ।तुरंत से एक बहाना निकला तो होठों से मानसी के,’अभी एक साल की पढ़ाई …..’और तपाक से जवाब भी मिल गया पापा का ,

‘वो लोग तो काफी मोर्डन है ,वहीं से पढ़ाई करनां’

‘जैसे सब तेय ही हो गया था और उसे तो बस एक घर के सपने को दूसरे घर में जा कर पूरा करना था ।सबकुछ इतनां स्मूदली होता गया और उसे बस हामी ही भरनी थी……सब सहेलियाँ ,’वाह ,वैरी लकी’

‘बस अपना खोया सा वजूद लेकर विवाह में बँधकर नया संसार शुरू हो गया ।कितना समय बीत गया ।बस उसके मोबाइल में लास्ट ‘कांग्रेच्युलेसन ‘विमुख का एक मेसेज था और कुछ यादें जो कभी मिट नहीं सकती ।बहुत कम आना होता मैके में ,जब भी आते नियत के घर पर ही सब मिलकर प्रोग्राम बना लेते ।

इस वेकेशन में दोनों बच्चो को लेकर दो तीन दिन रहने आयी थी ,कल सुबह तो जाना था वापस….और आज ,बस दिल से जुड़ा हुआ पल और पुल याद आया । निकल पड़ी …….काफी समय पानी के बहाव के साथ दील की लहेरो पर डूबती नीकलती ….. आँखों की नमी छुपाते हुए घर में दाखिल हुई … और वहां देखा, बाजू के घर से विमुख अपनी बेटी को लेकर आया था और उसके दोनों बच्चे खेल रहे थे ।

इतने सालों में किसी फंक्सन में हाई हेल्लो हुई थी कभी कभार। पापा मम्मी एकदम से तरह तरह की बातें करने लगे और विमुख ने चुप्पी तोड़ते हुए ,’कैसी हो ?’

‘बस ,ठीक ही हूँ’ कहकर अपने दोनो बच्चो से …

‘चलो अब मस्ती बंध करो ,जल्दी सो जाओ ,’और हाथ खींचकर दोनों को रूम की ओर ले जाने लगी ।इतने में मम्मी ,

‘अरे, खेलने दो ना ….एकदूसरे से जान पहचान होती है , बच्चे तो इतने घुल−मिल गए ज़रा से टाइम में ….’मानसी और विमुख ने एकदूसरे की ऒर देखा फिर मम्मी की ओर….मम्मी एकदमसे झेंप गयी

मानसी ने भी ऐकदम से बोल दिया ,’ घुल मिलकर कर क्या करना है ?कल तो यहाँ से चले जाना है …….’और गुस्से में रूम में जाने लगी ।

साड़ी के पल्लू से टेबल पर रखा हुआ कांच का वाज़ छ्न्न … से गिरकर टूट गया और मानसी ने मुड़कर एक बार विमुख की आँखों की नमी को आँखों से छुआ और तेजी से रूम में चली गयी ।
– मनीषा जोबन देसाई

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 441 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
लीकछोड़ ग़ज़ल / मुसाफ़िर बैठा
लीकछोड़ ग़ज़ल / मुसाफ़िर बैठा
Dr MusafiR BaithA
खिलाडी श्री
खिलाडी श्री
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
ऐसा खेलना होली तुम अपनों के संग ,
ऐसा खेलना होली तुम अपनों के संग ,
कवि दीपक बवेजा
जल जंगल जमीन जानवर खा गया
जल जंगल जमीन जानवर खा गया
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
"अवसाद का रंग"
Dr. Kishan tandon kranti
सत्य शुरू से अंत तक
सत्य शुरू से अंत तक
विजय कुमार अग्रवाल
मैं जानती हूँ तिरा दर खुला है मेरे लिए ।
मैं जानती हूँ तिरा दर खुला है मेरे लिए ।
Neelam Sharma
पैसा होय न जेब में,
पैसा होय न जेब में,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
मायके से दुआ लीजिए
मायके से दुआ लीजिए
Harminder Kaur
स्वयं का न उपहास करो तुम , स्वाभिमान की राह वरो तुम
स्वयं का न उपहास करो तुम , स्वाभिमान की राह वरो तुम
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
ہر طرف رنج ہے، آلام ہے، تنہائی ہے
ہر طرف رنج ہے، آلام ہے، تنہائی ہے
अरशद रसूल बदायूंनी
मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
Dr Archana Gupta
प्राण प्रतीस्था..........
प्राण प्रतीस्था..........
Rituraj shivem verma
उत्तंग पर्वत , गहरा सागर , समतल मैदान , टेढ़ी-मेढ़ी नदियांँ , घने वन ।
उत्तंग पर्वत , गहरा सागर , समतल मैदान , टेढ़ी-मेढ़ी नदियांँ , घने वन ।
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
मेरी ख़्वाहिश ने
मेरी ख़्वाहिश ने
Dr fauzia Naseem shad
श्री श्याम भजन
श्री श्याम भजन
Khaimsingh Saini
वीणा का तार 'मध्यम मार्ग '
वीणा का तार 'मध्यम मार्ग '
Buddha Prakash
💐अज्ञात के प्रति-95💐
💐अज्ञात के प्रति-95💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
अपनों को थोड़ासा समझो तो है ये जिंदगी..
अपनों को थोड़ासा समझो तो है ये जिंदगी..
'अशांत' शेखर
Khud ke khalish ko bharne ka
Khud ke khalish ko bharne ka
Sakshi Tripathi
मैं हर महीने भीग जाती हूँ
मैं हर महीने भीग जाती हूँ
Artist Sudhir Singh (सुधीरा)
फिर भी तो बाकी है
फिर भी तो बाकी है
gurudeenverma198
संत साईं बाबा
संत साईं बाबा
Pravesh Shinde
साहित्य का पोस्टमार्टम
साहित्य का पोस्टमार्टम
Shekhar Chandra Mitra
क्या कहुं ऐ दोस्त, तुम प्रोब्लम में हो, या तुम्हारी जिंदगी
क्या कहुं ऐ दोस्त, तुम प्रोब्लम में हो, या तुम्हारी जिंदगी
लक्की सिंह चौहान
-------ग़ज़ल-----
-------ग़ज़ल-----
प्रीतम श्रावस्तवी
पहला सुख निरोगी काया
पहला सुख निरोगी काया
जगदीश लववंशी
ये जो नफरतों का बीज बो रहे हो
ये जो नफरतों का बीज बो रहे हो
Gouri tiwari
23/167.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/167.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
चार दिनों की जिंदगी है, यूँ हीं गुज़र के रह जानी है...!!
चार दिनों की जिंदगी है, यूँ हीं गुज़र के रह जानी है...!!
Ravi Betulwala
Loading...